देखा कि बाहर से झाँकते हुए
लम्बी कार के काले शीशों के
पीछे की दुनिया
कितनी सफ़ेद है।
लम्बाई की आड़ में
पहुँचने वाले काले गट्टों ने
सफ़ेद साये से पूछा,
दिखने के इस अंदाज को
सीखने से
क्यों हरवाना चाहता है।
सीखने ने दिखने से
नजर मिलाने को
इन्कार कर दिया और बोला,
देख, देख के बहुत सीख लिया
अब सीख, सीख के देख।
सफ़ेद शीशों के पीछे की
काली दुनिया को सीख
सफ़ेद गट्टों को काले साये
पहचान आने लगे।
- नीरज मठपाल
अगस्त ३१, २०१०
मंगलवार, 31 अगस्त 2010
रविवार, 29 अगस्त 2010
फफूँदी
घर के किसी कोने में
दरी पर यूँ ही पड़ी
एक प्लेट ने उससे पूछा,
मैं तीन महीनों से उल्टी गिरी हूँ
फफूँदी का मैं अब घर बन चुकी हूँ
मुझे कब स्वच्छ पानी का
अमृत प्राप्त होगा?
फफूँदी हँसने लगी।
उसने चेहरे को प्लेट से
और दूर ले जाकर बुदबुदाया,
तू अकेली तो नहीं
सारे घर में सीलन है
उसी का पानी निचोड़
सब फफूँदी बन रहा है,
तू भी बन।
देखें पंचतत्त्व और ठोस पदार्थ में
भंगुरता किसे पहले दिखती है।
उसके मालिक ने कहा
घर को आग लगा दो !
लग गई आग।
इधर फफूँदी दूर किसी घर में
फिर हँस रही थी।
- नीरज मठपाल
अगस्त २९, २०१०
दरी पर यूँ ही पड़ी
एक प्लेट ने उससे पूछा,
मैं तीन महीनों से उल्टी गिरी हूँ
फफूँदी का मैं अब घर बन चुकी हूँ
मुझे कब स्वच्छ पानी का
अमृत प्राप्त होगा?
फफूँदी हँसने लगी।
उसने चेहरे को प्लेट से
और दूर ले जाकर बुदबुदाया,
तू अकेली तो नहीं
सारे घर में सीलन है
उसी का पानी निचोड़
सब फफूँदी बन रहा है,
तू भी बन।
देखें पंचतत्त्व और ठोस पदार्थ में
भंगुरता किसे पहले दिखती है।
उसके मालिक ने कहा
घर को आग लगा दो !
लग गई आग।
इधर फफूँदी दूर किसी घर में
फिर हँस रही थी।
- नीरज मठपाल
अगस्त २९, २०१०
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