स्थान : भारत गणराज्य, वर्ष : २०१०, कुछ खबरें :
[प्रस्तुत आंकडे इंटरनेट स्रोतों जैसे गूगल, विकी से लिए गए हैं एवं असलियत से थोडा इधर उधर हो सकते हैं]
१) जनवरी २,१६,१७,२२ - कोहरे के कारण ६ रेल दुर्घटनाएं - लगभग १५ की मौत, ६० से ऊपर घायल
२) जनवरी ३० - आंध्र प्रदेश में नाव डूबी - लगभग १२ मरे, २० लापता
३) फरवरी ५ - कश्मीर में मुठभेड़ - १७ भारतीय जवान शहीद
४) फरवरी १३ - पुणे में आतंकी हमला, बम विस्फोट - १७ मरे, ६० से ऊपर घायल
५) फरवरी १५ - बंगाल में नक्सलियों का हमला - २४ जवान मरे गए, कई लापता
६) फरवरी १७ - जलाऊं जिले में बस दुर्घटना - २२ की मौत
७) मार्च ४ - प्रतापगढ़ में मंदिर में भगदड़ - ६४ मरे, कई घायल
८) मार्च - कोलकाता में भवन में आग लगी - २४ की मौत
९) अप्रैल ३ - माओवादियों ने उड़ीसा में बस उड़ाई - १० पुलिस वाले मरे
१०) अप्रैल ६ – दांतेवाड़ा में नक्सली हमला – ७० जवानों की मौत
११) अप्रैल १३ - बंगाल में तूफ़ान - १४० से ऊपर मरे, ५००००० से ऊपर प्रभावित
१२) मई ७ - कश्मीर में मुठभेड़ - ७ मरे
१३) मई ८ - छत्तीसगढ़ में नक्सली हमला - ७ सी आर पी एफ ऑफिसर मरे
१४) मई १६ - छतीसगढ़ में माओवादी हमला - ६ ग्रामीण मरे
१५) मई १७ - दांतेवाडा में बस में विस्फोट, नक्सली हाथ - ४४ विशेष पुलिस कर्मी मरे
१६) मई १९ - तमिलनाडु में साइक्लोन - १० मरे, कई प्रभावित
१७) मई २१ - मंगलौर में एयर इंडिया का विमान दुर्घटनाग्रस्त – १५८ की मौत
१८) मई २८ - मेदिनीपुर रेल विस्फोट - १५ कि मौत, १५० से ऊपर घायल
१९) जून २ – गर्मी / लू का उत्तरी भारत में आतंक - १०० से ऊपर मरे
२०) जून १७ - महाराष्ट्र में भारी वर्षा - ४६ मरे
२१) जून २५ - पटना में ट्रक - बस दुर्घटना - १७ मरे, २५ घायल
२२) जून २६ - कश्मीर में मुठभेड़ - ५ मरे
२३) जून २९ - छत्तीसगढ़ में माओवादी हमला - २६ पुलिस वाले मरे
२४) जुलाई १९ - रेल दुर्घटना - ५० की मौत
२५) अगस्त १ - कश्मीर में मुठभेड़ - ६ मरे
२६) अगस्त ६ - लेह में बाढ़ - ११३ मरे, कई प्रभावित
२७) अगस्त १८ - कपकोट, उत्तराखंड में विद्यालय भवन गिरा - १७ मरे
२८) सितम्बर २० - शिवपुरी, मध्य प्रदेश में रेल दुर्घटना - २१ मरे, कई घायल
२९) अक्टूबर १० - बक्सर, बिहार में नाव डूबी – ३६ मरे
३०) अक्टूबर ११ – बुलंदशहर में बस नदी में गिरी – १८ मरे
३१) अक्टूबर ३० - बंगाल में नाव डूबी - १६ मरे, ७० लापता
३२) नवंबर १ - बंगाल में नाव दुर्घटना - ७४ मरे
३३) नवंबर २ - गुजरात में ट्रक दुर्घटना - १७ मरे
३४) नवंबर १५ - दिल्ली में इमारत गिरी - ६६ से ऊपर मरे
३५) नवंबर २१ - औरंगाबाद, बिहार में माओवादी हमला - ७ मरे
३६) दिसंबर २६ – बदायूं में बस ट्रक दुर्घटना - ३४ मरे
पुनश्च: २०११ का आरम्भ ही देखिये -
३७) जनवरी २०११ – शबरीमला, केरला में मंदिर भगदड़ - १०० से ऊपर मरे, कई घायल
१) यातायात संबंधी दुर्घटनाएं - बस, ट्रक, नाव, दुपहिया, कार, विमान
२) आतंकवाद - कश्मीर में वर्षों से चल रहा आतंक, नक्सली, माओवादी
३) मानवीय भूलें - भगदड़, भवनों का गिरना / जलना
४) प्रकृति का प्रकोप – बाढ़, गर्मी / सूखा, तूफ़ान, भूकंप, सूनामी
ये वही समस्याएं हैं, जिनका वर्षों से निदान पाने की कोशिश में कभी एक कदम आगे बढ़ाया जाता है, तो अगले ही क्षण दो कदम पीछे खींच लिए जाते हैं। शायद हमारे पास लड़ने के लिए सामर्थ्य से ज्यादा ही चीजें हो गयी हैं और सब कुछ नियंत्रण में लाना हर बीतते साल के साथ मुश्किल होता जा रहा है। हम सभी के पास जब भी समय हो, दोष देने के लिए बहुत कुछ है - भ्रष्टाचार, जनसंख्या, भुखमरी, कुपोषण, अशिक्षा और न जाने क्या क्या। पर शायद एक चीज कुछ पीछे छूट गयी है - जीवन की कीमत। ये खबरें तो कम से कम इसी तरफ इशारा करती हैं। खबरें आती रहती हैं आज इतने मरे, कल उतने मरे। हम एक अखबार में कोई भी ‘टाईमपास' खबर पढ़ने की तरह उसे पढ़ जाते हैं (वो भी जरूरी नहीं), शेष उसका कुछ अर्थ नहीं। सरकार प्रयत्नशील है कि कुछ ख़बरें तो कम की जाएँ, लेकिन उन्हें भी नहीं पता कितनी खबरें कितनी नयी दिशाओं से आने का इंतज़ार कर रही हैं।
मौत का ये अट्टाहास कभी कान से हल्की हवा सा गुजर जाता है, कभी बिलकुल समीप से गुजरती रेल की तरह धड़धड़ाहट करता दिल दहला देता है। क्या हम कभी जीवन की कीमत समझेंगे?
- नीरज मठपाल
जनवरी २६, २०११
[प्रस्तुत आंकडे इंटरनेट स्रोतों जैसे गूगल, विकी से लिए गए हैं एवं असलियत से थोडा इधर उधर हो सकते हैं]
१) जनवरी २,१६,१७,२२ - कोहरे के कारण ६ रेल दुर्घटनाएं - लगभग १५ की मौत, ६० से ऊपर घायल
२) जनवरी ३० - आंध्र प्रदेश में नाव डूबी - लगभग १२ मरे, २० लापता
३) फरवरी ५ - कश्मीर में मुठभेड़ - १७ भारतीय जवान शहीद
४) फरवरी १३ - पुणे में आतंकी हमला, बम विस्फोट - १७ मरे, ६० से ऊपर घायल
५) फरवरी १५ - बंगाल में नक्सलियों का हमला - २४ जवान मरे गए, कई लापता
६) फरवरी १७ - जलाऊं जिले में बस दुर्घटना - २२ की मौत
७) मार्च ४ - प्रतापगढ़ में मंदिर में भगदड़ - ६४ मरे, कई घायल
८) मार्च - कोलकाता में भवन में आग लगी - २४ की मौत
९) अप्रैल ३ - माओवादियों ने उड़ीसा में बस उड़ाई - १० पुलिस वाले मरे
१०) अप्रैल ६ – दांतेवाड़ा में नक्सली हमला – ७० जवानों की मौत
११) अप्रैल १३ - बंगाल में तूफ़ान - १४० से ऊपर मरे, ५००००० से ऊपर प्रभावित
१२) मई ७ - कश्मीर में मुठभेड़ - ७ मरे
१३) मई ८ - छत्तीसगढ़ में नक्सली हमला - ७ सी आर पी एफ ऑफिसर मरे
१४) मई १६ - छतीसगढ़ में माओवादी हमला - ६ ग्रामीण मरे
१५) मई १७ - दांतेवाडा में बस में विस्फोट, नक्सली हाथ - ४४ विशेष पुलिस कर्मी मरे
१६) मई १९ - तमिलनाडु में साइक्लोन - १० मरे, कई प्रभावित
१७) मई २१ - मंगलौर में एयर इंडिया का विमान दुर्घटनाग्रस्त – १५८ की मौत
१८) मई २८ - मेदिनीपुर रेल विस्फोट - १५ कि मौत, १५० से ऊपर घायल
१९) जून २ – गर्मी / लू का उत्तरी भारत में आतंक - १०० से ऊपर मरे
२०) जून १७ - महाराष्ट्र में भारी वर्षा - ४६ मरे
२१) जून २५ - पटना में ट्रक - बस दुर्घटना - १७ मरे, २५ घायल
२२) जून २६ - कश्मीर में मुठभेड़ - ५ मरे
२३) जून २९ - छत्तीसगढ़ में माओवादी हमला - २६ पुलिस वाले मरे
२४) जुलाई १९ - रेल दुर्घटना - ५० की मौत
२५) अगस्त १ - कश्मीर में मुठभेड़ - ६ मरे
२६) अगस्त ६ - लेह में बाढ़ - ११३ मरे, कई प्रभावित
२७) अगस्त १८ - कपकोट, उत्तराखंड में विद्यालय भवन गिरा - १७ मरे
२८) सितम्बर २० - शिवपुरी, मध्य प्रदेश में रेल दुर्घटना - २१ मरे, कई घायल
२९) अक्टूबर १० - बक्सर, बिहार में नाव डूबी – ३६ मरे
३०) अक्टूबर ११ – बुलंदशहर में बस नदी में गिरी – १८ मरे
३१) अक्टूबर ३० - बंगाल में नाव डूबी - १६ मरे, ७० लापता
३२) नवंबर १ - बंगाल में नाव दुर्घटना - ७४ मरे
३३) नवंबर २ - गुजरात में ट्रक दुर्घटना - १७ मरे
३४) नवंबर १५ - दिल्ली में इमारत गिरी - ६६ से ऊपर मरे
३५) नवंबर २१ - औरंगाबाद, बिहार में माओवादी हमला - ७ मरे
३६) दिसंबर २६ – बदायूं में बस ट्रक दुर्घटना - ३४ मरे
पुनश्च: २०११ का आरम्भ ही देखिये -
३७) जनवरी २०११ – शबरीमला, केरला में मंदिर भगदड़ - १०० से ऊपर मरे, कई घायल
पिछले कई वर्षों से तकरीबन इसी तरह की खबरें साल की सुर्ख़ियों में रहती हैं। इसके अतिरिक्त भी कुछ घटनायें रही साल २०१० की जैसे कि कुछ और भ्रष्टाचार के किस्से, राष्ट्रकुल खेल, सचिन के कमाल, आदि आदि, लेकिन जब २०१० का अवलोकन किया, तो ये दिल को दुखाने वाला ‘पैटर्न' मिला -
१) यातायात संबंधी दुर्घटनाएं - बस, ट्रक, नाव, दुपहिया, कार, विमान
२) आतंकवाद - कश्मीर में वर्षों से चल रहा आतंक, नक्सली, माओवादी
३) मानवीय भूलें - भगदड़, भवनों का गिरना / जलना
४) प्रकृति का प्रकोप – बाढ़, गर्मी / सूखा, तूफ़ान, भूकंप, सूनामी
ये वही समस्याएं हैं, जिनका वर्षों से निदान पाने की कोशिश में कभी एक कदम आगे बढ़ाया जाता है, तो अगले ही क्षण दो कदम पीछे खींच लिए जाते हैं। शायद हमारे पास लड़ने के लिए सामर्थ्य से ज्यादा ही चीजें हो गयी हैं और सब कुछ नियंत्रण में लाना हर बीतते साल के साथ मुश्किल होता जा रहा है। हम सभी के पास जब भी समय हो, दोष देने के लिए बहुत कुछ है - भ्रष्टाचार, जनसंख्या, भुखमरी, कुपोषण, अशिक्षा और न जाने क्या क्या। पर शायद एक चीज कुछ पीछे छूट गयी है - जीवन की कीमत। ये खबरें तो कम से कम इसी तरफ इशारा करती हैं। खबरें आती रहती हैं आज इतने मरे, कल उतने मरे। हम एक अखबार में कोई भी ‘टाईमपास' खबर पढ़ने की तरह उसे पढ़ जाते हैं (वो भी जरूरी नहीं), शेष उसका कुछ अर्थ नहीं। सरकार प्रयत्नशील है कि कुछ ख़बरें तो कम की जाएँ, लेकिन उन्हें भी नहीं पता कितनी खबरें कितनी नयी दिशाओं से आने का इंतज़ार कर रही हैं।
मौत का ये अट्टाहास कभी कान से हल्की हवा सा गुजर जाता है, कभी बिलकुल समीप से गुजरती रेल की तरह धड़धड़ाहट करता दिल दहला देता है। क्या हम कभी जीवन की कीमत समझेंगे?
- नीरज मठपाल
जनवरी २६, २०११