ये हैं हमारे प्रिय पांडे जी। आदित्य कुमार पांडे, जो आजकल पाश्चात्य संस्कृति के रंग में रंगकर आदि कहलवाना पसंद करते हैं। तो ठीक है - आदि ही सही, कल जब ये अपनी फोटो अखबार के प्रथम पृष्ठ पर देखेंगे तो कहेंगे, “अरे गुरू जी, क्या कर दिया ये आपने। सर, कुछ तो ख्याल रखा होता आपने अपने बच्चे का”। हम भी कह देन, “अरे काहे का बच्चा, बजाय हारमोनियम को गले में लटका कर घूमने के गिटार पकड़ पकड़ फोटो खिचाय रहे हो और क्या बजाते हो उ झमा झाम झाम”। विदेशों तक उसकी आवाज पका रही है मियाँ।
ये लो जी हमारा इतना कहना था कि पांडे जी शुरू हो गए –
झमा झाम झम , झमा झाम झम (तार ही तोड़ेंगे आज तो):
झमा झाम झम , झमा झाम झम (तार ही तोड़ेंगे आज तो):
इन द समर आफ सिक्सटी नाईन…
झमा झम झम, झमा झम झम।
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मुझे लगा पहले से तो आम इंसान कुछ बजाता भी तो हारमोनियम, तबला और ढोलक। मंदिरों मे झाँझर जरूर बजती। हाँ, कभी कभी कोई स्टाइल मारने के लिए “ माउथ आरगन” बजा लेता था।
ओह, किस दुनिया की सोच रहा हूँ मैं। ये तो नया ज़माना है। ये तो २१वीं सदी कि युवा पीढ़ी है, इसका तो सिद्धांत है – “जो बिकता है, वही चलता है। गिटार बिक रहा है तो बजेगा भी वही”। कभी सोचता हूँ कि क्या आजकल के बच्चे भी डेस्क बजाते होंगे? क्या आजकल के बच्चे अपने टिन के पेंसिल बॉक्स को तोड़कर उसमें रबर बैंड बांधकर संगीत सुनते होंगे? शायद नहीं, ये पीढ़ी तो या तो म्यूजिक क्लास वाली है या फिर वीडिओ गेम वाली।
इसी सब में एक रोनी सी आवाज सुनाई दी –
अजीब दास्ताँ हैं ये, कहाँ शुरू कहाँ खतम,
ये मंजिलें हैं कौन सी, न वो समझ सके न हम।
अजीब दास्ताँ हैं ये, कहाँ शुरू कहाँ खतम,
ये मंजिलें हैं कौन सी, न वो समझ सके न हम।
मैं इधर उधर देख रहा हूँ कि यार ये कौन गधा रैंक रहा है। देखा तो छज्जे पर चढ़के अपने पांडे जी गाने भी लगे थे। हमें फौरन समझ मैं आ गया कि आज दिन अच्छा नहीं है। हमने आव देखा न ताव, फौरन चप्पल सर पर रख कर हम अपनी कुटिया की तरफ भागे।
पर आज भी एक प्रश्न सामने है - दो चार गाने बजाने तो पांडे जी ने सीख लिए। पर क्या कारण थे उनके गिटार शुरू करने के पीछे? कोई इश्क विश्क का सीन तो नहीं था? कोई ऐसी तो नहीं थी जो इन्हें सुबह ७ बजे फोन करके कहती थी, “आदि ! सुबह हो गयी, ब्रश कर लो और उसके बाद फिर मुझे फोन करो” और शाम को फोन करके कहती थी, “आदि ! आदि !! तुम अभी तक गिटार क्लास में नहीं गए, तुम्हें खाना खाना है कि नहीं आज़”। अब मरता बेचारा क्या न करता? आख़िर भूख का तो कोई इलाज ही नहीं होता है ना। हमारा आदि बेचारा भी बन गया रॉक स्टार।
और भना भन भन, झना झन झन... उसका गिटार बजाना आज भी जारी है। बजाये जा आदि, बजाये जा। लाटा टाइम्स तेरे साथ है।
- नीरज मठपाल
फरवरी ५, २००८
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