ए बड़ी सी मेज
महोगनी की
विशाल घिसी हुई भुजा सी।
तेरा अंत निकट है
आगे के पाए उखाँडू पहले
या पीछे के
या दे मारूं
एक बड़ा हथौड़ा बीच में।
अजीब समस्या
प्राण हर लेने में भी
सोचना
कि आरम्भ कैसे हो।
सामान्य सी दर्शित होती मेज की
मौत ऐसी जटिल।
तो क्यों
जटिल मनुष्य को मिलती
इतनी सामान्य मौत।
बस कुछ ही आवाजें
ठांय ठांय ठांय और
भट भट भट भट्टाम।
- नीरज मठपाल
मई २५, २०१०
मंगलवार, 25 मई 2010
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