छः मंजिल चढ़कर पुस्तकालय की,
पहुँचा इतिहास खोजने
वह इतिहास जो पहले से ही
पता था वहाँ मिलेगा ही नहीं
इतिहास तो छिपा है हिमालय
में, और शायद डूबी हुई द्वारिका में
गंगा और उसकी उपनदियों के
पानी में, शायद दक्खन के पठार में
न जाने क्यों जानते हुए भी
ये प्रश्नवाचक प्रयत्न किया
क्या इतिहास मिलेगा यहाँ भी
इस विशाल ओंटारियो झील में
और इन ऊंची इमारतों की नीव में?
शायद २१०० तक यह प्रश्न,
प्रश्न ही न रहे |
- नीरज मठपाल
नवम्बर २७, २०१३
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