रविवार, 12 अक्टूबर 2008

तलाश

अरे ओ एकांत
किस तरफ तू स्वप्न मग्न है?
देख पत्थरों के बीच भी
शांत संगीत में
किसे तेरी तलाश है।

अरे ओ मौन
किस तरफ तू छिप रहा है?
देख दिन की ओर भी
दिनकर की रोशनी में
किसे तेरी तलाश है।

निरीक्षण के ओ पैमानों
क्यों तुम्हारा प्रणयगीत मंद है?
देखो मिट्टी की ओर भी
ध्वनि प्रदूषण के हाहाकार में
किसे तुम्हारी तलाश है।

त्रिकोण के चार कोण
अब पंचभुज रच रहे हैं।
देखो यह बहुभुज निर्माण भी
सीमित कोणों की परमशक्ति में
त्रिभुज केंद्र को तुम्हारी तलाश है।

- नीरज मठपाल
अक्टूबर ११, २००८

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