गहरे नीले रंग की टिन की चादरें,
चारों ओर दूधिया रोशनी बिखेरती,
छत से लटकती लम्बी लम्बी ट्यूबलाइट्स,
सफ़ेद रंग से पुती निरंग दीवारें,
कमरे को विभाजित करते कुछ घनाकार खम्भे,
आसपास अपने ही जैसे अनजाने चेहरों के बीच
इसी चहारदिवारी में एक कर्मचारी बैठता है।
कुछ अनकहे अपूर्ण सपनों को लेकर,
कागजों या कम्पयूटर पर अपने हाथों को घिसते हुए,
चाय काफ़ी की चुस्कियों को गले में उतारकर
मस्तिष्क को प्रतिदिन प्रतिक्षण कुंद होते देखता है।
शरीर को विभाजित करती मांसपेशियों,
शिराओं और धमनियों में एक पराधीन खून तैरता देख
इसी को जीवन की नियति मानकर एक कर्मचारी यहीं बैठता है ।
- नीरज मठपाल
नवम्बर २१, २००८
शुक्रवार, 21 नवंबर 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
hi neerj nice poems yaar.
जवाब देंहटाएंbahut khoob...
जवाब देंहटाएंjeete raho mathpal..