शनिवार, 2 जून 2007

अनुभव

“जीवन एक रोचक सफ़र। अनुभवों से लहलहाते रास्ते। व्यापक रूप में मीठे अनुभवों की प्रतिशतता भारी, (आवश्यक) खट्टे, मिर्च लगे अनुभव भी पर्याप्त।”

उम्र के साथ - साथ अनुभव भी बढ़ता जा रहा है। प्रत्येक नया दिन, एक संभावित नया अनुभव। दृष्टिकोण भिन्न – भिन्न होने का विकल्प तो अभी भी उपलब्ध है, किन्तु जीवन की अजैविक गतिविधियों से सम्बंधित विचारों में कुछ स्थिरता सी आ रही है। विगत २१ वर्षों का प्रभाव स्पष्टतः प्रस्फुटित होने लगा है। यह स्थिति प्रत्येक के साथ आती है – चाहे वह जड़ हो या चेतन। चेतन मन की वास्तविक चेतना वही है जब वह ‘जड़’ को आत्मसात करते हुए चेतनामय रहे। यदि जीवन को वाच्यों में तौलें, तो स्थिति ‘मनुष्य’ की वास्तविक विशेषता की स्वतः ही व्याख्या कर देती है। उदाहरणार्थ,

कृतवाच्य – मनुष्य जीवन जीता है।
कर्मवाच्य - जीवन मनुष्यों द्वारा जिया जाता है।

उपरोक्त दो कथनों में ही संभवतः कुछ असत्यता हो, क्योंकि यह भी अनुभव आधारित हैं और अनुभव खट्टे भी हो सकते हैं, मीठे भी। जो भी हो, जीवन रस तो अनुभवों में ही है, वह भी तभी जब उनसे कुछ सकारात्मक ग्रहण किया जाये।

- नवंबर २६, २००१
नीरज मठपाल

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