वार्ता इस बात से शुरू हुई कि म के बच्चों को अब एक और प्रश्न का सामना करना पड़ेगा – “भारत की पहली महिला राष्ट्रपति का नाम बताइए?” आने वाले समय में बच्चों पर और भी काफी प्रश्न लादे जा सकते हैं।
तो इसके लिए राजा म ने सुझाव दिया कि क्यों न कुछ इस तरह की योजना बनाई जाये कि सभी एक ही समय पर बच्चे पैदा करें। इससे बच्चों को “कम्बाइन्ड स्टडी” करने का अवसर मिलेगा और माता पिता पर भी कम दबाव रहेगा। राजा पी ने इस सुझाव का सहर्ष स्वागत किया। किन्तु उनकी एक समस्या थी – प्रेमरोग की। जिसके कारण उन्हें शादी की थोड़ा जल्दी है। तो बच्चों के लिए उन्हें काफी इन्तजार करना पड़ जाएगा – बाकी लोगों की शादी होने तक। समस्या का समाधान ये निकला कि पी के दूसरे बच्चे के साथ तालमेल बिठाया जाएगा और जरूरत पड़ी तो पहले बच्चे को भगवान भरोसे छोड़ दिया जाएगा।
वार्ता में नया मोड़ तब आया जब राजा ची ने अपना मुँह खोला। उनका कहना था कि वो इस “स्कीम” पर अपना एक बच्चा तो कुर्बान करने की सोच सकते हैं, लेकिन उनकी पहले से एक और योजना है, “अपना बच्चा बाकियों के बच्चे के ठीक एक साल बाद पैदा करना है। इससे किताबें और कापियां फ्री में मिल जाया करेंगी। मेरा बच्चा अपने ददा और दीदीयों की किताबें पढ़ेगा।”
इस पर आवेशित होकर राजा पी ने कहा, “हमें राजा ची जैसे भिखारियों को अपनी इस योजना में शामिल करने की जरूरत नहीं है। हमें तो उन साहसी लोगों की जरूरत है, जो हमारे बच्चों के साथ कदम से कदम मिला कर चल सकें। उनके एक साल पीछे पीछे नहीं।”
कुल मिलाकर इस फैसले के बाद दो धाराएँ निकलकर सामने आयी:-
१ - वो राजा जो अपने राजकुमार और राजकुमारियां लगभग एक ही समय पर पैदा करेंगे।
२- वो राजा (भिखारी), जो अपने बच्चे ऊपर पैदा हो चुके बच्चों के ठीक एक साल बाद पैदा करेंगे।
आप सभी मित्रगण भी इन दोनों धाराओं में से किसी एक में शामिल होने के लिए आमंत्रित हैं। ध्यान रहे कि आपका निर्णय कल को इतिहास बदलने की ताक़त रखता है। इसलिये सोच समझकर निर्णय लें। आख़िर सवाल आपके बच्चों के ही नहीं, बल्कि पूरे देश के भविष्य का है।
(इस फैसले को पढ़ने के बाद किसी का मन हम पर जूते मारने का कर रहा है, तो कृपया अच्छी ब्रांड के नए जूते ही मारें। आख़िर हमारा भी कोई “स्टैंडर्ड” है। कष्ट हेतु धन्यवाद।)
- नीरज मठपाल
जून १५, २००७
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