गुरुवार, 25 मार्च 2010

लैंप से लटकी परी

एक चौड़ी सी सड़क पर जब मैंने ठीक सामने 'स्टॉप' का चिह्न देखा, तो गाड़ी खुदबखुद ही रुक गयी। जब प्रतिदिन एक ही रास्ते से गुजरना होता हो, तो हाथ पाँव दिमाग के आदेशों की प्रतीक्षा नहीं करते बल्कि खुद ही सदिश बन जाया करते है। अन्य गाड़ियों के जाने का इंतज़ार करते हुए मैंने पीछे की सीट पर पड़ी पोलीथिन की तरफ़ झाँका, तो नज़र एक लकड़ी की बनी हुई छोटी सी परी पर गयी। कहने को तो ये एक सजावटी सामान भर था, पर असल में जैसे इसका श्वेत रंग शांति का, फूल - पत्ती प्रकृति का प्रतीक हो। इन्हीं विचारों के बीच गाड़ी स्वयं ही आगे बढ़ी और घर के नजदीक जाकर ही रुकी।

खरीदारी का सामान लेकर मैं और मेरी धर्मपत्नी रात के आठ बजकर बीस मिनट पर घर में घुसे, तो हमेशा की तरफ़ भाग्यवान ने सामान निकाल निकाल कर एक एक को फिर से परखना शरू कर दिया। हर सामान को देखकर उसकी मुस्कान और चौड़ी होती जाती जैसे अपनी खरीदारी पर गर्व महसूस कर रही हो। हो भी क्यों ना? आज 'डॉलर शॉप' पर मेहरबानी जो करी थी। एक छोटा सा बन्दर, फेंग शुई, दो चम्मच, एक मेढक की आवाज़ रहित मूर्ति। सभी धीरे धीरे कहीं न कहीं 'फिट' होने लगे। जिसे कहीं जगह ना मिली, उसे टीवी सेट के ऊपर, नीचे, आगे, पीछे किसी तरफ़ लगा दिया गया।

सब से निवृत होकर भाग्यवान हाथों में परी को नचाने लगी। बेचारी कभी इधर देखती, कभी उधर देखती, पर कहीं एक भी जगह न पा सकी जहाँ पर परी के लायक योग्य जगह मिल पाती। जब एक करूणा भरी नज़र से उसने मेरी तरह देखा, तो लगा जैसे साक्षात् प्रकृति माता हमारे घर में विराजमान होना चाहती है और हमारे पास एक योग्य आसन ही नहीं है। मैं भाग्यवान की यह छवि अधिक देर निहार नहीं सका क्योंकि मेरा हृदय दया भाव से भर गया और उसकी उसी पल सहायता करने की मैंने ठान ली। जब इन्सान एक बार कुछ ठान लेता है, तो सारी कायनात उसकी सहायता करने को आ जाती है। अंग्रेजी में एक कहावत है, "व्हैर दियर इज अ विल, दियर इज अ वे" और फिर यहाँ पर सवाल भाग्यवान का था, जिसके लिए तो मैं सागर पर्वत सब एक कर सकता था।

इसी सब विचार मंथन के बीच मेरी नज़र एक ५ फीट ऊँचे लैंप पर पड़ी, जो दो बल्बों की रौशनी में न सिर्फ स्वयं जगमगा रहा था, बल्कि पूरे घर को अपनी सफेदी की चमकार में नहला रहा था। बस फिर क्या था, जैसे ही मेरी नज़र उसके एक हुक पर पड़ी, परी आज से उसकी हो गयी। भाग्यवान के हाथों से परी को लेकर मैंने उसे लैंप पर टांग दिया। इस भाव विभोर दृश्य को देखकर सारी कायनात ख़ुशी से झूम उठी, देवताओं ने फूल बरसाएं, अनु मलिक ने मंगल गीत गाये और सारे कमरे में ख़ुशी का निवास हो ही गया।

इसी ख़ुशी से प्रेरित होकर एक लेखनी चल पड़ी लैंप और परी के इस महामिलन को शब्दों से अंकित करने। कृपया आप भी लैंप और परी को अपना आशीर्वाद दें, जिससे उनका मंगलमय जीवन और भी मंगलमय हो जाये।

- नीरज मठपाल
मार्च २३, २०१०