मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

अपन लोग

अंग्रेजों को अंग्रेजों का नाम देते देते ये जान लिया
आत्मीय भले ही वो न हों
लेकिन शिष्टाचार उनमें ज्यादा है
माला भले ही हम पहनाएं
पर इज्जत से बात करने का तरीका उनमें ज्यादा है

क्यों है जो हम पूरब पश्चिम का नारा लगते हैं
क्यों नहीं हम पूरब पश्चिम का फरक मिटा देते हैं
क्या है पूरब क्या है पश्चिम
क्या है उत्तर क्या है दक्षिण
पूरी भारत माता अपनी है
पूरी पृथ्वी अपनी है

सूरज अपना, चंदा अपना, तारे अपने
फिर क्यों नहीं तुम सब अपने
काश ये 'पराये' शब्द ही नहीं बना होता
काश कि प्यार का नया मतलब ही अपना होता
और वही सर्वभाव होता

सपना तो यहीं देखता है मन कि
सब कुछ ही अपना होता

- नीरज मठपाल
अप्रैल १७, २०१२