रविवार, 12 अक्तूबर 2008

इंतजार के बीस मिनट

धैर्य का प्रारूप देखिये
जिसने दिनों को क्षणों में परिवर्तित कर दिया

अधैर्य का भी ब्यौरा दीजिये
जिसने कुछ क्षणों को पूरा जन्म बना दिया

धैर्य - अधैर्य का खेल है ही निराला
जिसने बढ़िया खेला, पर्वत को पानी बना दिया

प्रश्न है कि इंतजार के बीस मिनटों ने
लोहे को पिघलाकर वाष्प कैसे बना दिया?

- नीरज मठपाल
अक्टूबर १२, २००८

तलाश

अरे ओ एकांत
किस तरफ तू स्वप्न मग्न है?
देख पत्थरों के बीच भी
शांत संगीत में
किसे तेरी तलाश है।

अरे ओ मौन
किस तरफ तू छिप रहा है?
देख दिन की ओर भी
दिनकर की रोशनी में
किसे तेरी तलाश है।

निरीक्षण के ओ पैमानों
क्यों तुम्हारा प्रणयगीत मंद है?
देखो मिट्टी की ओर भी
ध्वनि प्रदूषण के हाहाकार में
किसे तुम्हारी तलाश है।

त्रिकोण के चार कोण
अब पंचभुज रच रहे हैं।
देखो यह बहुभुज निर्माण भी
सीमित कोणों की परमशक्ति में
त्रिभुज केंद्र को तुम्हारी तलाश है।

- नीरज मठपाल
अक्टूबर ११, २००८