गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

छ: मित्र

छोटे परदे पर सरपट भागते चित्रों के साथ
एक गोलाकार चार इंच व्यास की आकृति
और छ: घनिष्ठ मित्रों का अबाध साथ
कुछ पता नहीं कई शामें कैसे निकल गई
उनके पूरे के पूरे दशक को
कुछ पतली गोलाकृतियों में सिमटा पाया
लेकिन उनका असर कितने लाखों में आज भी होता होगा

गजब है, गजब है, गजब है
छ: घनिष्ठ मित्रों का साथ गजब है।

- नीरज मठपाल
फरवरी १७, २०११