सोमवार, 4 दिसंबर 2017

The Luster of Periodic Table and a Blue Hat


Earlier today, I was looking at my good old lazy blog for correctness of a punch line, which goes like this - "Madness is busy in playing games with mind to violate the laws of conversation". It started a minor chemical reaction of sorts in brain - I'm still not sure if it stimulated the right brain a bit or left brain. But as the matter of writing is facts as well as creativity, I would assume it would have at least said "hello" to both the sides. 

It was after I had long stared at Dmitri Mendeleev's photo in my laptop wallpaper, which is a funny but inspiring piece with the top part printed with: 

"STAND BACK!
i'm going to try SCIENCE"

and bottom part printed with:

"AND OTHER AWSOME SHIT TOO!".   

In between the printings, on the right side, there was a picture of the great scientist with a beaker in one of his hands and he was pouring a chemical from the beaker to another one staying still in the other hand. All this while looking at the chemicals with focused experienced eyes. He, the inventor of periodic table, in his long white beard, a bow tie, cream shirt and well pressed 3 piece suit. The background of the wallpaper had one of the most striking tables of our teen age years - The "Periodic Table" (AAVART SARANEE) itself.

As I looked at the different letters spread out on the table, young years of life started painting its own pictures. The series of letters went like H - Li - Be - B - C - N - O - … - Na - Mg - Al - Si - P - S - K - Ca - … Pt - Au - … Bh - Hs - Mt…  I hardly could take my eyes off the atomic numbers and atomic mass for some time and the patterns followed by these numbers. I was lost in thoughts with the chemistry going haywire again after a long hiatus of 20 years and thoughts of the kids trying to figure out the best way to make Oxygen in a lab.

Sky was full of colors coming from different chemical elements, minerals, gases and metals, but then about an hour later, it started turning to its original colors - a sky blue sky. Life after 20 years started taking over - Cyber Security and Sales started occupying my thoughts.


I wanted to say loudly that the sky is not as sky blue today as it generally is. But then how blue is Copper Sulfate (CuSO4.5H2O)? But then why there are no blue hat hackers?

- Neeraj Mathpal
Dec 4, 2017

बुधवार, 27 नवंबर 2013

इतिहास का एक छोटा सा प्रश्न


छः मंजिल चढ़कर पुस्तकालय की, पहुँचा इतिहास खोजने
वह इतिहास जो पहले से ही पता था वहाँ मिलेगा ही नहीं
इतिहास तो छिपा है हिमालय में, और शायद डूबी हुई द्वारिका में
गंगा और उसकी उपनदियों के पानी में, शायद दक्खन के पठार में
 
न जाने क्यों जानते हुए भी ये प्रश्नवाचक प्रयत्न किया
क्या इतिहास मिलेगा यहाँ भी  
इस विशाल ओंटारियो झील में और इन ऊंची इमारतों की नीव में?
 
शायद २१०० तक यह प्रश्न, प्रश्न ही न रहे |
 
- नीरज मठपाल 
नवम्बर २७, २०१३ 

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

कुछ पल कोठी के साथ

(अंग्रेजो के समय की बनी एक कोठी को समर्पित, जो बचपन और किशोरावस्था के कई चित्रों को आज भी रंग भर देती है)  

आज एक बहुत अरसे बाद उस बड़ी कोठी में होकर आया 
सौ साल पुराने देवदारु के सामने खड़ी उस पुरानी इमारत को निहार कर आया 
उन बड़ी घुमावदार सीढियों पे छलांगे मारते हुए एक बार फिर खुद को पाया 
धूल की मोटी परत से सनी लम्बी आरामकुर्सी पे खुद को लम्बा होते पाया

जिस कोठी में कभी कहकहे गूंजा करते थे 
आज कह पाना मुश्किल था कि यह उसकी नितांत शांति थी या घुप्प अँधेरा 
जो मन को ऐसे अशांत कर रहा था 
जैसे कहकहों और ठठाकों को ठंडी हवाएं उड़ा ले गयी हों 

भूतहा पिक्चरों में अक्सर दिखते हैं 
ऐसी ही कोठियाँ और ऐसे ही उपस्कर (फर्नीचर)
पर नहीं दिखता उनमें वो जीवन अमृत 
जो शायद अब भी इन मजबूत लकड़ियों में बंद पड़ा है 

कोठी के भाड़ से ऐसी आवाज रुक रुक के आ रही है जैसे 
तीन चार भूत कुछ लड़ते हो, फिर कुछ इंतेज़ार करते हों प्रतिक्रिया का 
धड़कन थोड़ी तेज जरूर चल रही थी पर बीता समय गवाह था 
ये भूत नहीं लंगूरों की कोई तो प्रतियोगिता थी मालिकाना हक जताने की 

कोठी के बायीं तरफ की बालकनी में डगमग डगमग दो कदम सावधानी से रखे 
फिर तिलंगे की शीशेदार विस्तृत खिड़कियों से बाहर के पूरे दृश्य को आँखों में समाया 
कोठी के कुछ कमरों को ठकठकाने का अवसर बीच बीच में मिलता रहा 
लेकिन उन बड़ी अलमारियों में छिपने का निराला अनुभव बस सोच ही पाया 

आज फिर उसके आंगन में थोड़ी देर बैडमिंटन खेल आया 
दरवाजे के एक टूटे शीशे को बॉल से थोड़ा सा और तोड़ आया 
ऐसे ही अचानक हुए इस दौरे में कई यादें जी आया 
फिर से उस देवदारू के पेड़ की छाँवतले बैठ उस धूसर हरे रंग को निहार आया 

और कह आया उस कोठी / बंगले से - तुम यादों में हरे ही रहोगे। 


- नीरज मठपाल 
नवम्बर १२, २०१३ 

गुरुवार, 25 जुलाई 2013

पूछोगे तो उत्तर मिलेगा क्या?


कवि -
 
कोई जन्मा तो कोई मरण की गोद में समाया 
कोई जवानी की शरण में बढ़ा तो कोई बुढ़ापे की 
ये चक्र क्या है जन्म मरण का 
इस भूलभुलैया को कोई क्या  सुलझा पाया 
 
मरण -
 
ये क्या हो रहा है ये क्यों हो रहा है 
क्यों लोग रो रहे हैं क्यों लोग दुखी हैं 
जब शरीर छोड़ते जीव ने आस पास देखा 
तो कुछ भी पूछ ना पाया 
 
बुढ़ापा -

खाना चबाना थोड़ा मुश्किल होने लगा
चार सीढ़ियां चढ़ना थोड़ा मुश्किल होने लगा
जब बुढ़ापे ने जवानी की तरफ देखा
तो इस अंतर का कारण पूछने लगा

जवानी -
 
समय का अभाव मुंडी हिलाने लगा 
एकाग्रता की स्याही सूखने लगी 
जब जवानी ने बचपन की तरफ देखा 
तो इस अंतर का कारण पूछने लगी 
 
बचपन -
 
खेलते खेलते थकान का नाम ना आया 
गहरी नींद में सपने का भान ना आया 
जब बचपन ने बुढ़ापे की तरफ देखा 
तो इस अंतर का कारण पूछने लगा 
 
जन्म -

ये क्या हो रहा है ये क्यों हो रहा है
क्यों लोग हंस रहे हैं क्यों लोग खुश हैं
जब जन्मे बच्चे ने आस पास देखा
तो कुछ भी पूछ ना पाया

- नीरज मठपाल 
जुलाई २५, २०१३