घर के किसी कोने में
दरी पर यूँ ही पड़ी
एक प्लेट ने उससे पूछा,
मैं तीन महीनों से उल्टी गिरी हूँ
फफूँदी का मैं अब घर बन चुकी हूँ
मुझे कब स्वच्छ पानी का
अमृत प्राप्त होगा?
फफूँदी हँसने लगी।
उसने चेहरे को प्लेट से
और दूर ले जाकर बुदबुदाया,
तू अकेली तो नहीं
सारे घर में सीलन है
उसी का पानी निचोड़
सब फफूँदी बन रहा है,
तू भी बन।
देखें पंचतत्त्व और ठोस पदार्थ में
भंगुरता किसे पहले दिखती है।
उसके मालिक ने कहा
घर को आग लगा दो !
लग गई आग।
इधर फफूँदी दूर किसी घर में
फिर हँस रही थी।
- नीरज मठपाल
अगस्त २९, २०१०
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