गुरुवार, 8 सितंबर 2011

एक पति - अपनी पत्नी के प्रति

कभी कहती हो तुम हो 'परफैक्ट'
कभी कहती हो तुम में हैं कई 'डिफैक्ट'

कभी कहती हो तुम ही बने मेरे लिए
कभी कहती हो कैसे तुम पल्ले बंध गए

कभी कहती हो पैसा कम कमाते हो
कभी कहती हो पैसा क्यों लुटाते हो

कभी कहती हो जीना मरना साथ साथ
कभी कहती हो दूर रखो मेरे हाथों से अपना हाथ

कभी फ़ोन पर घंटो बातें करती हो
कभी फोन को सर पर पटक देती हो

कभी कहती हो मेरी जान हो तुम
कभी कहती हो बुरी आदतों की खान हो तुम

कुछ भी तुम कहती हो, पर प्यार तो बहुत करती हो
मुंह से भले ही न बोलो, मन में तो मुझे हरदम रखती हो

तुम कभी हंसकर बोलती हो, तो बहारें आ जाती हैं
तुम कभी गुस्सा होती हो, तो रातें डूब जाती हैं

मैं क्यों गुस्सा होऊँ इस बहती जिन्दगी की मुस्कान से
इसी मुस्कान से मुझे तुम मिली हो, तुम्हें मैं मिला हूँ

तुम भी क्यों गुस्सा होते हो इस जिन्दगी के रास्तों से
जब हमसफ़र साथ है तो रास्ते भी खुशी से साथ दे जायेंगे

फिर चाहे मुझ में हो कितने भी 'डिफैक्ट'
और जिन्दगी चाहे जितनी भी हो 'इम्परफैक्ट'

- नीरज मठपाल
सितम्बर ६, २०११

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