बुधवार, 12 नवंबर 2008

अंक, तेरी जय

अभी देखता हूँ मैं अपने सेलफोन को
जिस पर ० से लेकर ९ तक के अंक अंकित हैं
कुछ अंकों का ये खेल कितना महान है
इन कुछ अंकों ने पुरा काल से
पूरी दुनिया को चला रखा है

बचपन से लेकर आज तक
हर जगह यही अंक पहचान बनते आए
कभी अनुक्रमांक के नाम से तो
कभी इम्प्लौयी क्रमांक के नाम से

घर का पता भी अंक से
लापता हूँगा तो वो भी अंक से
मिलूँगा तो वो भी अंक से
आगे बदूँगा या पीछे हटूंगा तो वो भी अंक से

सोचो अगर अंक नहीं होते तो क्या होता
रूपयों और डॉलरों का ये व्यापर कैसा होता
विज्ञान का गणित
विज्ञान की मधुशाला न बन जाता
पर मधुशाला में भी तो अंक है

कितना ही सोच लूँ
कौन सी चीज है जिसे अंक की जरुरत नहीं
पर सोच ही जवाब दे गयी
बिना अंक का कुछ भी न मिल पाया

हे अंक, आज तू फ़िर से जीत गया
अंको के इस मुकाबले में
मैं फ़िर नौ - शून्य से मात खा गया

- नीरज मठपाल
नवम्बर १२, २००८

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