बुधवार, 19 नवंबर 2008

मिलन (१)

अनसुनी आहट का ये प्रथम बिन्दु
सुपरिचित प्रिय के आगमन का आभास
क़दमों की मदमाती चाप
द्वार पर होती मीठी खट खट
हृदय गति को अनायास ही
जैसे त्वरण मिल गया हो

प्रीत से मिलने का संयोग श्रृंगार
चक्षुओं की अपलक व्यग्रता
नासिका में वायु की तीव्र होती ध्वनि
अधरों का मूक कम्पन
कंठ से लार का उदर में प्रवेश
मिलन का ये अनकहा प्रथम बिन्दु

- नीरज मठपाल
नवम्बर १९, २००८

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