क्षणिका को दूसरे अर्थ में लें तो यह लेखक का अभिमान भी दिखाती है, जो उचित सा भी प्रतीत होता है| यदि कहानीकार, इतिहासकार राजे महाराजे, देश विदेश, आदि के सम्बन्ध में न लिखते, तो शायद इतिहास कहीं खो गया होता और आज पुरातत्व वेत्ता उसे ढूँढने का प्रयास कर रहे होते| लेखक के हस्तों (हाथों) से अंकित होते अक्षर वास्तव में ही समाज का आईना बनते हैं| उनका मूल्य एक जीवन में महसूस करना पद और पैसे से परे है|
जब कोई संपादक लिखता है तो उन हस्थाक्श्रों का एक मूल्य हो जाता है...हस्ताक्षर हमें भीड़ मैं अलग करते हैं.....विचार भी एक प्रकार से हस्ताक्षर ही हैं......
चण्द शब्दों मे आज के क्रूर सत्य को उजागर किया है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंक्षणिका को दूसरे अर्थ में लें तो यह लेखक का अभिमान भी दिखाती है, जो उचित सा भी प्रतीत होता है| यदि कहानीकार, इतिहासकार राजे महाराजे, देश विदेश, आदि के सम्बन्ध में न लिखते, तो शायद इतिहास कहीं खो गया होता और आज पुरातत्व वेत्ता उसे ढूँढने का प्रयास कर रहे होते| लेखक के हस्तों (हाथों) से अंकित होते अक्षर वास्तव में ही समाज का आईना बनते हैं| उनका मूल्य एक जीवन में महसूस करना पद और पैसे से परे है|
जवाब देंहटाएंजब कोई संपादक लिखता है तो उन हस्थाक्श्रों का एक मूल्य हो जाता है...हस्ताक्षर हमें भीड़ मैं अलग करते हैं.....विचार भी एक प्रकार से हस्ताक्षर ही हैं......
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