मंगलवार, 25 मार्च 2008

खुशी

खुशी की आवाज
जब छलकती हुई कानों पर पड़ती है,
खुशी का साज
जब हृदय के द्वार पर पहुँचता है,
मेरे होँठ स्वयं ही फ़ैल जाते हैं।
जैसे खुशी के स्वागत के लिए
मोतियों की माला यौवन चरम पे हो।
जैसे मेरी बाहें खुलने को आतुर हों
खुशी समेटकर उसे फैलाने के लिए।
इस आवाज का ये रूपहला अंदाज
मन में भीगा भीगा सा ये अहसास
बस यूँ ही गुदगुदा जाता है
पल कुछ और खुशियों के दे जाता है।

- नीरज मठपाल
मार्च २५, २००८

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