मंगलवार, 1 मई 2007

लम्बू मोटू - भाग २


(सलाह – भाग २ पढ़ने से पहले भाग १ जरूर पढ़ लें।)

आप भी सोचते होंगे आज तस्वीर में ये दो नमूने कौन दिख रहे हैं। यदि आप सोचते हैं कि इनमें से एक ठाकुर है, तो आप बिल्कुल गलत हैं। लेकिन यही वो दो शख्स हैं जो आज ठाकुर को चम्बल से दिल्ली लाने के लिए जिम्मेदार हैं। इसलिये लम्बू – मोटू और ठाकुर की कहानी आगे बढ़ाने से पहले इन दोनों नमूनों को जान लेना भी बहुत जरूरी है।

जो माला लगा कर ‘पोज’ दे रहा है, वो अपने को ‘लव गुरू’ कहता है। पर असल मे उसकी एक गरीब बस्ती में चाय की दुकान है। अजी, दुकान भी क्या, बस ये समझ लीजिये कि एक जगह पर एक ठेला खङा है। उसी ठेले पे ये लव गुरू रात को सो भी जाता है। ये हमेशा से ऐसा नहीं था। कभी ये ठाकुर का बाँया हाथ हुआ करता था। पर वो कन्डोलिया में बिताया एक महीना ……

दूसरा जो कभी सिंटौले पक्षी की तरह चम्बल के जंगलों में आज़ाद घूमा करता था, हर समय अपने मधुर आवाज में गाया करता था – “ कोयल सी मेरी बोली … सिट्टू – सिट्टू …”। आज ठाकुर का ‘पर्सनल बावर्ची’ बनकर दिन रात उसकी गुलामों की तरह सेवा कर रहा है। ये हमेशा से ऐसा नहीं था। कभी ये ठाकुर का दाँया हाथ हुआ करता था। पर वो कन्डोलिया में बिताया एक महीना ……

उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों में बसा और देवदारू के वृक्षों से घिरा यह कन्डोलिया वही जगह है जहाँ लम्बू और मोटू पहली बार एक दूसरे से मिले थे। यह वही जगह है जहाँ ठाकुर अपने दल बल के साथ ‘समर वेकेशन’ पर गया था। और हाँ, यही वह जगह है जिसने इन सबकी ज़िन्दगी बदल कर रख दी।

(ठाकुर के साथ कन्डोलिया में क्या हुआ? क्यों लव गुरू और सिट्टू की ज़िन्दगी बरबाद हुई? लम्बू – मोटू कन्डोलिया में क्या कर रहे थे? इन सब सवालों के जवाब देती कहानी का अगला भाग किसी और दिन …… )

- नीरज मठपाल
मई १, २००७

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