गुरुवार, 3 मई 2007

लम्बू मोटू - भाग ४ (अन्तिम भाग)


(सलाह - अन्तिम भाग पढ़ने से पहले भाग १, २ एवं ३ पढ़ लें।)

आइये ठाकुर से मिलें। यह ‘क्लीन शेव्ड’ चेहरा जो आप देख रहे हैं, कभी इस शख्स की घनी दाढ़ी – मूंछें हुआ करती थी। इसकी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी ‘ट्रेजेडी’ यह है कि इसे दो बार प्यार में धोखा मिल चुका था। पहली बार के धोखे के दुःख में इसने दाढ़ी काट ली और दूसरी बार के बाद मूंछे। देखना बाकी है कि इसके तीसरे प्यार का क्या होता है। चलिये अब भाग ३ से आगे को बढ़ते हैं -

गोलियों की आवाज़ सुनकर ठाकुर बाहर निकलता है, पर आस पास कोई नजर नहीं आता। बस अंधेरे में गोलियों की आवाज़ सुनाई देती है। थक हारकर वो वापस आकर सो जाता है।

अगली सुबह सूर्य की किरणें जब अपनी रश्मियां बिखेर रही होती हैं, जब ठंडी हवा और चिडियों का कलरव मंदिर की घंटियों के साथ मिलकर मधुर संगीत की झंकार उत्पन्न कर रहा होता है। तभी माँ भवानी का भक्त ठाकुर अपने गुर्गों लव गुरू और सिट्टू के साथ मंदिर की तरफ जाता है। वहीं मंदिर मे एक सुन्दर लड़की पूजा अर्चन कर रही होती है। उसकी लटें बार बार आंखों पर आ रही होती हैं, जिन्हे वो हवा के साथ उड़ने दे रही होती है। आरती करके जैसे ही वो पलटती है, ठाकुर की नजरें उससे टकराती हैं और ठाकुर को ‘लव एट फर्स्ट साइट’ हो जाता है। ठाकुर उसे ठकुराइन बनाने का फैसला कर लेता है।

लेकिन ठाकुर को यह पता नहीं था कि असल में वह सुन्दर लड़की एक आंख से भेंगी थी और वह उस समय ठाकुर को नहीं बल्कि लव गुरू को देख रही थी। उस शांत मनोहर पवित्र वातावरण में एक ‘लव ट्रायंगल’ ने जन्म ले लिया था।

अब ठाकुर की ज़िन्दगी में दो क्रम रोज की बात बन जाते हैं – एक रात को गोलियों के चलने की आवाज सुनना और दूसरा सुबह सुबह मंदिर जाना। इसके साथ ही एक और क्रम चोरी – चोरी, चुपके चुपके चलते रहता है – ‘लव गुरू और ठकुराइन का प्रेम प्रसंग’। एक दिन वो दोनों चुपके से शादी भी कर लेते हैं। इस शादी से बेखबर जालिमों का जालिम ठाकुर अपने दिल की बात ठकुराइन से कभी कह नहीं पाता।

अब ये समझने के लिए तो कोई ‘राकेट साइंस’ चाहिये नहीं कि आज लव गुरू चाय के ठेले पर क्यों है। जी हाँ, जब ठाकुर को सच का पता चला, तो उसके लिए ये सदमे से कम नहीं था। उसने लव गुरू और ठकुराइन की जान को तो बख्श दिया, पर ये भी सुनिश्चित कर दिया कि लव गुरू ज़िन्दगी भर चाय का ठेला चलाते रहे। ठकुराइन लव गुरू के वियोग में पागल हो गयी और आज भी मंदिर की चौखट पर उसका इंतजार कर रही है।

सदमे से पहले ही भन्नाये हुए ठाकुर को जैसे ही उस रात गोलियों की आवाज़ सुनाई देती है, वो ग़ुस्से में अपने तमंचे, कट्टे और सुतली बम लेकर निकल पड़ता है। पूरा इलाका छानने के बाद उसे वो घर दिख जाता है जहाँ से गोलियों की आवाज आ रही होती है। जब वह उस कमरे के दरवाजे के पास पहुँचता है तो देखता है कि एक पक्षी वहाँ कम्प्यूटर पर कुछ खटर बटर कर रहा है।

असल में पक्षीराज चील एक खूनी कम्प्यूटर गेम खेल रहा होता है और पूरे इलाके के स्पीकर उसी से ‘कनेक्टेड’ होते हैं। वही गेम नेटवर्किंग के जरिये लम्बू मोटू भी खेल रहे होते हैं। उसी गेम से दिशाओं को चीरती सी गोलियों की आवाजें आ रही होती हैं।

ग़ुस्से से पागल ठाकुर चील को गोली मारने को तैयार हो जाता है और कहता है – “इन गोलियों की आवाजों ने मुझे बहुत दिनों से पागल कर रखा है। तू जानता नहीं कि मेरे इलाके में बच्चा – बच्चा कट्टे , तमंचे और सुतली बम लेकर घूमता है। आज तो तू गया काम से। अपनी आखिरी इच्छा बता”।

यह सब सुनकर पक्षीराज की सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है। डरते मरते वह धीमी आवाज़ में कहता है – “मैं इसका दोषी नहीं। इस गेम को यहाँ लाने और ‘फुल वाल्यूम’ में बजाने के लिए लम्बू – मोटू जिम्मेदार हैं। मेरी आखिरी इच्छा यही है कि आप मेरे से पहले लम्बू – मोटू को मार दें”।

ठाकुर के राजी होने पर पक्षीराज उसे लेकर लम्बू – मोटू के कमरे की तरफ उड़ता है। सारी बात जानकर लम्बू – मोटू ठाकुर को ‘चैलेंज’ करते हैं – “तूने कट्टे – तमंचे बहुत चलाये, मर्द है तो हमें इस कम्प्यूटर गेम में हराकर दिखा”। ठाकुर का स्वाभिमान जाग उठता है और वह गेम खेलने के लिए तैयार हो जाता है।

इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि ठाकुर लम्बू – मोटू से गेम हार जाता है। पर आश्चर्य यह है कि वह उन्हें जिन्दा छोड़ देता है और प्रण करता है कि वह एक दिन उन्हें उस गेम में हराकर दिखायेगा। सब कुछ छोड़ छाड़ कर वह दिल्ली आ जाता है।

तब से ठाकुर दिल्ली में मजे कर रहा है। गेम जीतना तो दूर की बात है, उसे अभी तक कम्प्यूटर खोलना और बंद करना भी नहीं आया है। स्वामीभक्त सिट्टू भी उसकी सेवा करने दिल्ली ही आ जाता है। आजकल वही उसके लिए खाना बनाता है, घर साफ करता है, उसके कपड़े धोता है, उसके पाँव दबाता है। लम्बू मोटू अपनी अपनी कम्पनी में अपनी नौकरी बजा रहे हैं। दोनों ख़ुशी और मस्ती की ज़िन्दगी जी रहे हैं।

हम भी आप लोगों से विदा लेते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं कि आगामी नवंबर तक ठाकुर की ज़िन्दगी में कोई ठकुराइन आ जाये। अरे हाँ, पाठकों से निवेदन है कि वो लव गुरू और पागल ठकुराइन को मिलाने में अपना सहयोग दें। उस पगली की ताजा फोटो आपकी जानकारी के लिए ऊपर चिपका दी गयी है।


- नीरज मठपाल
मई ३, २००७

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