रविवार, 22 अप्रैल 2007

पत्र

मेरे कदम स्वतः प्रतिदिन
उस पत्रपेटी की तरफ बढ़ते हैं।
स्वतः ही आँखें उन कागजों में
मेरा नाम खोजने लगती हैं।
हाथ वहाँ कुछ न पाकर
स्वतः ही हृदय को वहीं रोक देता है।
धन्यवाद मेरी चिर साथी मस्तिष्क कोशिकाओं का
जो स्वतः ही सब सामान्य कर देती हैं।
अंतर्मन से जुड़े तार
स्वतः ही कभी न पहुँचने वाले
उस पत्र के भाव पढ़ लेते हैं।

... Nice body coordination :-)

- नीरज मठपाल
जनवरी २००५

1 टिप्पणी:

  1. हा हा हा… body coordination तो सुंदर है ही, क्षणिका भी सुंदर बन पड़ी है।
    अपने को लाटा कहने की वजह? ऐसा कोई कुप्रभाव तो आपने अभी तक नहीं छोड़ा कि आपको लाटा कहा जा सके।
    शुभम।

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