चार दीवारें खड़ी हो गयी
ऊपर से टिन बिछ गया
एक दीवार में छेद कर
लकड़ी का फट्टा लगा दिया
चार पाँव अन्दर
बस बन गया एक घर।
समय बीता
कोपलें फूटी,
तेज हवा आई
कोपलें बह गई।
पतझड़ आया
चारों आँखें बंद हुई,
छत टूटी
फट्टे फट गए
घर बन गया खंडहर।
कमांडर की आवाज आई
जैसे … थे।
मैं हँसा
ऐसे ही तो थे।
पर पृथ्वी
क्या ऎसी ही थी?
उत्तर
कोलाहल में कहीं दब गया है।
- नीरज मठपाल
फरवरी ३, २००४
गुरुवार, 12 अप्रैल 2007
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