रविवार, 22 अप्रैल 2007

प्रीत

आगे बढ़ा चुके हैं कदम,
इसका तात्पर्य यह तो नहीं कि अपनी प्रीत को कम कर दें हम।
इससे तो मैं प्रीत का नाम ही न लूँ।
भले खामोश हो जाये मेरी प्रीत।
जो रहे, वही प्रीत।

- नीरज मठपाल
जून ११, २००६

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें