अवरोध - प्रतिरोध सब दृश्य हो चला,
मन का प्रतिरोध अदृश्य हो चला,
मन का अवरोध क्षीण हो चला,
आत्म - अवरोध शून्य है
मस्तिष्क तब भी मौन है।
जाने किस अवरोध की प्रतीक्षा है,
क्या मन - आत्म - मस्तिष्क को
मिल रही ये कोई मूक दीक्षा है।
- नीरज मठपाल
जून ११, २००६
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