रात्रि के इस अन्तिम प्रहर में
या ब्रह्म मुहूर्त के प्रारब्ध मे
एक मध्यमार्गी।
सांत्वना और शांति के लिए
समझौतों से गुजरता हुआ
एक मध्यमार्गी।
अपनी पहचान को ढूँढता
अपने वजूद को टटोलता
एक मध्यमार्गी।
सघन विरलता से संतृप्त
विरल सघनता से प्रसन्न
एक मध्यमार्गी।
निम्न कर्मों को समेटे हुए
उच्च कर्मों की ओर लक्षित
एक मध्यमार्गी।
आडम्बर से छलित
सिद्धहस्तों से मतिभ्रमित
एक मध्यमार्गी।
मस्तिष्क नयनों पर
पत्थर रखे हुए दिग्भ्रमित
एक मध्यमार्गी।
- नीरज मठपाल
अक्टूबर १८, २००१
शनिवार, 21 अप्रैल 2007
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