तुम्हें देखा तो दिल कराह उठा …
जानते हो क्यों?
तुम्हारा उधार जो चुकाना था।
तुमसे नजरें मिली तो बैठी रह गई …
जानते हो क्यों?
उधार चुकाने को पैसे जो नहीं थे।
तुमसे हाथ मिलाया तो धड़कनें बढ़ गई …
जानते हो क्यों?
तुम्हारी नजरें मेरी एच.एम.टी. पर जो थी।
तुमसे बोलना चाहा तो जबान फिसल पड़ी …
जानते हो क्यों?
गले में थूक जो अटक गया था।
तुम्हारे पंजे कि छुअन को हटाना चाहा …
जानते हो क्यों?
साँसे अपने अंत की ओर जो जा रही थी।
आँखों में पानी, श्वास में श्वास अटक गया …
जानते हो क्यों?
क्योंकि हम जो गरीब थे, तुम जो अमीर।
- नीरज मठपाल
अगस्त १२, १९९९
शनिवार, 21 अप्रैल 2007
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