तीन किनारे
पहला-दूसरा एक तरफ
पहले में डूबकर
दूसरे का साथ दे।
जो बच निकले, या यूँ कहिये
कि है जो अतिरिक्त
वही तीसरा किनारा
सह-अस्तित्व का प्रश्न नहीं
ये तो दो छोर ही हैं
और नौका से आना-जाना ही है
पर इन तीन किनारों के ऊपर
अपना प्रिय चौथा किनारा।
बन जाये यदि यही छत
तो आंच न आये
किसी भी किनारे पर।
इस चौथे किनारे की चाहत
धुन बनकर यदि छा जाये
तो आकाश में
प्यारे बादल होंगे
सूरज की छटा भी होगी
और छोटी छोटी पानी की बूँदें भी।
देव-गीत, ऋचाओं का मंगल स्वर होगा – और होगी
कल्पतरू की शीतल छाँव।
सब चौथे किनारे पर
पुष्प वर्षा के लिए।
अब यही किनारा देखता है हृदय,
अब यही किनारा चाहता है हृदय।
- नीरज मठपाल
जून १५, २००६
शनिवार, 21 अप्रैल 2007
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