गुरुवार, 12 अप्रैल 2007

द्वंद्व

एक अजनबी सी
कुछ जानी - पहचानी भीड़ में
खिलखिलाते अधरों और
निष्क्रिय मानसों के साथ
चेतन को जड़वत दृगों से
जागृत करने का द्वंद्व।
संघनित रेखाओं के मध्य
विश्वास से परिपूर्ण
समय पर धमनियों को मिलाती
शांत एवं धीर
एकांत रेखा को पाने का द्वंद्व।
सीमाओं को असीम
अनुभव की गहराइयों के साथ
छोटे से प्रांगण में
असीम बनने की प्रसन्नता,
इन प्रसन्न मुद्राओं में
वास्तविक प्रसन्नता परखने का द्वंद्व।
सर्व द्वंद्वो – अंतर्द्वंद्वो पर
विजय पाने का द्वंद्व।
.........द्वंद्व जारी है।

- नीरज मठपाल
अगस्त २५, २००४

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