आज ऐसे ही ख़्याल आया कि दोस्तों के शानदार हाल समाचारों और कर्मों का वर्णन किया जाये। वैसे भी यही लोग मेरे लिखे हुए के इकलौते पाठक रहे हैं। गलती इनकी नहीं है। जब विकल्प ही नहीं हो कहीं भागने का, तो ये लोग कर भी क्या सकते हैं। फिलहाल मैं ज्यादा भूमिका ना बांधते हुए उद्देश्य की तरफ बढ़ता हूँ। गप-शप और चर्चाओं का केंद्र चीन-ओ-मंगोलियन नरेश राकेश चंद्र सिंह परवाल की शादी रही। आप उनका प्रसन्न चेहरा तो देख ही रहे हैं। जब शाहजहाँ की शादी हुई होगी, तब वो भी इतना खुश नहीं हुआ होगा। लेकिन मेरा मित्र समाज इस बात से ज्यादा खुश रहता है कि उन्हें जमकर नाचने का मौका मिलेगा। किसी घरेती कि मजाल कि वो हम लोगों के डांस की तारीफ करे बिना रुखसत हो जाये। अजी शराबी तो शराबी, सुबह - शाम पहाड़ी ठंड में पैकेट के दूध की चाय पीने वाले भी ' प्रोफेशनल डांसर्स ' को मात देते नजर आते हैं। दूल्हे को सजाने में उतना टाइम नहीं लगता जितनी ये बारातियों कि अलबेली टोली एक दूसरे को सजाने में लगा देती है। बस शराब और सजने सजाने का ऐसा संगम हुआ कि वर को भी खफा होना पड़ा - दिखावे का ही। पर जब ये बाराती भांड नाचने लगते हैं, तो बस तन मन सब रम जाता है ' डांस ' में। पर इस बात कि कोई ' गारंटी ' नहीं कि दो घंटे के बाद किसे कहाँ ढूँढने जाना पड़ेगा। खैर इस बार भी बारात नाची और ख़ूब नाची। राकेश की इस विजय पर सारा मित्र समाज उन्हें बधाईयाँ देता है एवं उनके कुशल वैवाहिक जीवन की कामना करता है।
लेखक - अमेरिका से एक भांड, जो केवल मन से ही इस शादी में शामिल हो सका।
पुनःश्च : दोस्तों, ये लेखन अब जारी रहेगा। कुछ भी, कैसा भी।
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