गुरुवार, 12 अप्रैल 2007

महानगर

एक मैली कमीज
हैंगर पर लटकी पड़ी है
वेलवेट का जैकेट बगल में
चमचमा रहा है।
ठिठुराने वाली ठंड में भी
बाहर की चमक ज्यादा जरूरी है।
अन्दर का मैल किसे नजर आता है,
गंगाजली रिन बार तो है ही
गर्मियाँ आते ही
कमीजें चमचमाने लगेंगी।
महानगरों में सब कुछ चमचमाता है
जो चमकता नहीं
वह दिखता भी नहीं,
न ड्राइवर को, न सरकार को
न कम्पनियों को और न डाक्टर को।
रोज ऐसे दस नजर आते हैं
जो जुगाड़ से एसी में खिल रहे होते हैं
और ऐसे हजार
जो मैली कमीज में पसीना-पसीना हो रहे होते हैं।
रिन की टिकिया भी
उनके पसीने में डूबती नजर आती है।
मेरे पास एक फार्मूला है – क्या कोई कम्पनी
चमकने वाला ‘ प्रोडक्ट ’ बनाएगी।
सैकड़ों आफर हजारों लोगों को लाखों का चूना लगाने को
उतावले हो रहे हैं।
भाई, एक मुझे भी देना
एक फैमिली पैक मुझे भी।

- नीरज मठपाल
फरवरी ३, २००४

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