सोमवार, 23 अप्रैल 2007

जोशी जी - एक बातचीत


मनोज जोशी यूँ तो २८ वर्ष के हैं, लेकिन आज भी उनमें २० वर्ष के युवा की तरह जोश बरकरार है। वे भारत की एक बड़ी साफ्टवेयर कम्पनी मे ' कन्सल्टैंट ' हैं। आजकल वे काम के सिलसिले में सिंगापुर में हैं। लाटा टाइम्स ने उनसे गूगल टाक पर बात की। पेश हैं इस बातचीत के मुख्य अंश -

लाटा - जोशी जी नमस्कार

मनोज - नमस्कार

लाटा - आपको अपने बारे में एक ' लाइन' कहनी हो तो क्या कहेंगे?

मनोज - आदमी मुसाफिर है , आता है जाता है। यही सच है।

लाटा - आज आप एक कामयाब इन्सान हैं। आप अब तक के अपने जीवन को सफल कहेंगे?

मनोज - सफल भी और नहीं भी। सफल इसलिये कि कमजोर तबके से 'कम्पेयर' करें तो 'लाइफ' अच्छी लगेगी और मजबूत तबके से 'कम्पेयर' करें तो खराब।

लाटा - देश से बाहर सिंगापुर में आपका सबसे अच्छा अनुभव क्या रहा?

मनोज - (कुछ सोचकर) हम दूसरे देश को महान नहीं कहते चाहे हम यहाँ कितने भी 'सेफ' हों, कितनी ही 'फैसिलिटी' हों क्योंकि हमें कहीं न कहीं अपने देश और अपने दोस्त याद आते हैं। हम असल में देश को नहीं, अपने दोस्तों और 'फैमिली' को 'मिस' करते हैं। इसलिये हमें कभी विदेश अच्छा लग ही नहीं सकता। चाहे हम इंडिया जाकर दोस्तों से कई समय तक न मिल पायें, फिर भी विदेश जाकर उन्हें ज्यादा 'मिस' करते हैं।

लाटा - तो आपके लिए दोस्ती के क्या मायने हैं?

मनोज - सभी 'सैलफिश' होते हैं। ठीक भी है। दोस्तों के बीच हम कई बातें 'शेयर' कर सकते हैं। हँस सकते हैं। रो सकते हैं। किसी की भी , कितनी भी जला सकते हैं। जब मर्जी तब ग़ुस्सा हो सकते हैं। ये सब 'फैसिलिटी' एक साथ कहाँ मिलेगी (जोर जोर से हँसते हुए), बात में दम है कि नहीं।

लाटा - बिल्कुल, बहुत दम है। बीच में आपके 'अफेयर' की चर्चाएँ गरम थी। आप 'लव' और 'अफेयर' के बारे में कुछ कहना चाहेंगे?

मनोज - देखो 'लव' किस चिड़िया का नाम है, ये हमें नहीं पता। हाँ हम इस उम्र में होने वाले आकर्षण का शिकार जरूर हुए, पर सिंगापुर आने के बाद हमें सच्चाई पता चल गई। बाकी आप खुद समझदार हैं।

लाटा - आप इंडिया आकर सबसे पहले क्या करना चाहेंगे?

मनोज - दिल्ली जाकर दोस्तों से मिलना चाहेंगे और साथ बैठकर 'दारू' पीना चाहेंगे।

लाटा - परिवार कि आपके जीवन में क्या अहमियत है?

मनोज - बहुत ज्यादा। माता, पिता, भाई, बहिन, रिश्तेदार और भरोसे के दोस्त परिवार में आते हैं। भरोसे का मतलब पैसा कतई नहीं है। भरोसा एक सोच है जो अपने आप पैदा होती है। शायद माया के जाल में हर आदमी की एक सोच पैदा होती है।

लाटा- आप अपनी 'प्रोफेशनल लाइफ' के अनुभवो के बारे में संक्षेप में कुछ बताना चाहेंगे?

मनोज - देखो भाई, एक सच्ची बात तो ये है कि जुगाड़ ही सबसे बड़ा 'टूल' है। जुगाड़ ही सब चीजों का बाप है। इसके लिए शुक्ला जैसे बातूनी, लाटे जैसे चतुर और परवाल की तरह 'प्रायोरिटी' पता होनी चाहिऐ। बुद्धि का प्रयोग एक प्रतिशत से ज्यादा नहीं।

लाटा - आप लाटा टाइम्स के पाठकों के लिए कुछ कहना चाहेंगे?

मनोज - इसको पढ़ते रहिए और लाटे को अपना सहयोग दीजिए।

लाटा - धन्यवाद, हम आपके सफल जीवन की कामना करते हैं।


(अमेरिका से नीरज मठपाल, अप्रैल २३, २००७)

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