शनिवार, 21 अप्रैल 2007

मैं वही हूँ

मैं वही हूँ
हाँ वही तो हूँ
बस कुछ भूल सा गया था
शायद कहीं खो गया था
या फिर राह में चलते – चलते
सो सा गया था।
अभी झटके से नींद खुली
तो तपन का एहसास हुआ
इस शरीर में ठंड का ही असर था
सो तपन महसूस कर
ठंडक सी मिली
लगा कि
हाँ मैं वही हूँ
वही जो अपने में विश्वास करता है –
विश्वास …. असीम अनंत।
वही जो सबसे मजबूत है
पूरे तीन सौ साठ अंश तक।
सच ….. आज मैं बहुत खुश हूँ।
क्योंकि यही काफी है मेरे लिए
कि
मैं वही हूँ।

- नीरज मठपाल
अप्रैल ४, २००३

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