रविवार, 29 अप्रैल 2007

थोड़ा अनुमान लगायें


कुछ महीनों पहले तक नवीन (कोटी) और सुरेन्द्र (बच्चा) एक ही कम्पनी में काम करते थे। एक दिन दोनों किसी पिकनिक पार्टी में जाते हैं। एक फोटो के आधार पर लाटा टाइम्स पेश करता है उन दोनों के बीच हुई काल्पनिक बातचीत:-

बच्चा: अरे भुक्खड़! ज़रा आराम आराम से खा। कोई लेकर भागने वाला नहीं है तेरा खाना।
कोटी : यार जिन दिनों किस्मत खराब चल रही हो, उन दिनों करना पड़ता है। फिर तेरी प्लेट की इमरती पर भी तो नजर है। (हँसता है)

बच्चा: हाँ बेटा, क्यों नहीं। तेरे को तो मैं इमरती क्या, पूरा खाना ही खिलाऊंगा।
कोटी: अरे हद हो गयी, लंदन जाने वाला है। एक पार्टी देना तो दूर, तू तो एक इमरती भी खिलाने से मना कर रहा है। (मन ही मन में सोचता है - बच्चे से पार्टी लेना तो बहुत ही टफ काम है)

बच्चा: ठीक है भई। तू खुश रह। ये ले, मर (इमरती देता है)
कोटी (अपना सारा खाना चट करने के बाद) : वाह बच्चे, मजे आ गए।

बच्चा: सयाने, बच्चा होगा तू। तू अभी मेरी अल्मोड़ा स्पेशल चाल को नहीं जानता (हँसता है)। मैं जब किसी का काटता हूँ तो हवा को भी खबर नहीं होती।
कोटी (जोर से हंसते हुए): वो तो अब पूरी दिल्ली को पता है। लंदन वालों की भी किस्मत जल्दी फूटने वाली है।

बच्चा (शरमाते हुए टापिक बदलता है): डैड (जोशी) बड़ा चालू है यार। मेरी शर्ट मार के बंगलौर भाग गया।
कोटी: तेरी क़सम!!! तेरी तो शर्ट ही मारी। मेरी तो पैंट भी मार के ले गया है एक। एक सफ़ेद रंग का 'रूमाल' भी नहीं छोड़ा उसने। छोडूंगा नहीं उसको तो मैं।

बच्चा: पहले पकड़ तो सही। (हंसता है) वैसे मैं तो धपोला के यहाँ इस 'वीक एंड' जा रहा हूँ दो-चार चीजें मारने।
कोटी: ठीक है। तू ऐश कर। मुझे तो अपनी ड्यूटी बजानी है (उदास होने का दिखावा करता है)।

(दोनों खाने की दूसरी प्लेट लेने चले जाते हैं। लाटा टाइम्स की कल्पनाओं का तार भी टूट जाता है। कोशिश जारी रहेगी कि ये तार फिर से कभी 'कनेक्ट' हो)

- नीरज मठपाल
अप्रैल २९, २००७

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