शनिवार, 21 अप्रैल 2007

जानते हो क्यों?

तुम्हें देखा तो दिल कराह उठा …
जानते हो क्यों?
तुम्हारा उधार जो चुकाना था।

तुमसे नजरें मिली तो बैठी रह गई …
जानते हो क्यों?
उधार चुकाने को पैसे जो नहीं थे।

तुमसे हाथ मिलाया तो धड़कनें बढ़ गई …
जानते हो क्यों?
तुम्हारी नजरें मेरी एच.एम.टी. पर जो थी।

तुमसे बोलना चाहा तो जबान फिसल पड़ी …
जानते हो क्यों?
गले में थूक जो अटक गया था।

तुम्हारे पंजे कि छुअन को हटाना चाहा …
जानते हो क्यों?
साँसे अपने अंत की ओर जो जा रही थी।

आँखों में पानी, श्वास में श्वास अटक गया …
जानते हो क्यों?
क्योंकि हम जो गरीब थे, तुम जो अमीर।


- नीरज मठपाल
अगस्त १२, १९९९

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें